काशी के भैरव




 काशी के कोतवाल काल भैरव
भगवान शिव की इस नगरी काशी के व्यवस्था संचालन की जिम्मेदारी उनके गण सम्भाले हुए हैं। उनके गण भैरव हैं जिनकी संख्या चौसठ है एवं इनके मुखिया काल भैरव हैं। काल भैरव को भगवान शिव का ही अंश माना गया है। इन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है। बिना इनकी अनुमति के कोई काशी में नहीं रह सकता। मान्यता के अनुसार शिव के सातवें घेरे में बाबा काल भैरव है। इनका वाहन कुत्ता है। इसलिए काशी के बारे में कहा भी जाता है कि यहां विचरण करने वाले तमाम कुत्ते काशी की पहरेदारी करते हैं। पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार एक बार अपनी वर्चस्वता साबित करने के लिए ब्रह्मा एवं विष्णु भगवान शिव की निंदा करने लगे। जिससे शिव जी अति क्रोधित हो गये। क्रोध में आकर शिव जी तांडव करने लगे जिसके प्रभाव से प्रलय जैसी स्थिति उत्पन्न हो गयी। इसी दौरान शिव जी में से उनकी भीषण स्वरूप वाली आकृति भैरव के रूप में उत्पन्न हुई। भगवान शिव के क्रोध से उत्पन्न भैरव ने अपने बांयें हाथ की अंगुली एवं दाहिने पैर के अंगूठे के नाखून से ब्रह्मा जी के पांचवे सिर को काट दिया। जिससे भैरव पर ब्रह्महत्या का पाप लग गया। ब्रह्महत्या के पाप से छुटकारा पाने के लिए भगवान शिव ने भैरव को एक उपाय बताया। उन्होंने भैरव को ब्रह्माजी के कटे कपाल को धारण कर तीनों लोकों का भ्रमण करने को कहा। ब्रह्महत्या की वजह से भैरव काले पड गये। भ्रमण करते हुए जब काल भैरव काशी की सीमा में पहुंचे इस दौरान उनका पीछा कर रही ब्रह्महत्या काशी की सीमा में प्रवेश नहीं कर सकी। ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त होने पर कालभैरव प्रसन्न हो गये और तभी से काशी की रक्षा मे लग गये। साथ ही उन्होंने काशी की सुरक्षा के लिए 8 चौकियां भी स्थापित की। बाबा कालभैरव का प्रसिद्ध मंदिर विश्वेषरगंज स्थित के 32/22 भैरवनाथ में है। बड़े से मंदिर परिसर में बाबा की दिव्य प्रतिमा स्थापित है। माना जाता है कि मार्ग शीर्ष के कृष्णपक्ष की अष्टमी को सायंकाल बाबा कालभैरव उत्पन्न हुए हैं। इस दिन को बाबा के जन्मोत्सव के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान बाबा की प्रतिमा का कई प्रकार के सुगन्धित फूलों से आकर्षक ढंग का श्रृंगार किया जाता है। इसी दिन को ही भैरवाष्टमी भी कहते हैं और इनकी वार्षिक यात्रा भी होती है। एक पैर पर खड़े बाबा कालभैरव काशी के दण्डाधिकारी हैं। प्रत्येक रविवार को बाबा कालभैरव के दर्शन-पूजन का विशेष विधान है। इस दिन काफी संख्या में भक्त दर्शन करने बाबा दरबार में पहुंचते हैं। वाराणसी में नियुक्त होने वाले तमाम बड़े प्रशासनिक एवं पुलिस अधिकारी सर्वप्रथम बाबा विश्वनाथ एवं काल भैरव का दर्शन कर आशीर्वाद लेते हैं। कालभैरव का मंदिर प्रातःकाल 5 से दोपहर डेढ़ बजे तक एवं सायंकाल साढ़े 4 से रात साढ़े 9 बजे तक खुला रहता है। मंदिर में सुरक्षा के भी समुचित उपाय किये गये हैं। पुलिस के जवान तो तैनात रहते ही हैं साथ ही मंदिर परिसर में सीसीटीवी कैमरा भी लगा हुआ है। मान्यता के अनुसार बाबा कालभैरव के दर्शन से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं। माना गया है कि बिना कालभैरव के दर्शन के बाबा विश्वनाथ के दर्शन-पूजन का फल प्राप्त नही होता है। कैन्ट स्टेशन से करीब पाँच किलोमीटर दूर यह मंदिर स्थित है। कैन्ट से ऑटो द्वारा मैदागिन पहुंचकर वहां से पैदल ही काल भैरव के मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
बटुक भैरव - काशी के कोतवाल कालभैरव ने इस नगरी की रक्षा के लिए 8 चौकियां स्थापित किया। जिनका अलग-अलग मंदिर काशी में स्थापित हैं। भैरव के इन्हीं महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक मंदिर है बटुक भैरव का। बटुक भैरव का प्रसिद्ध मंदिर कमच्छा मोहल्ले में स्थित है। काफी बड़े मंदिर परिसर में मुख्य द्वार से भीतर जाते ही बायीं ओर बटुक भैरव की दिव्य प्रतिमा स्थापित है। गर्भगृह के सामने एक हवन कुण्ड भी है। इस मंदिर परिसर में भैरव के वाहन कुत्ते काफी संख्या में रहते हैं। इस मंदिर में रविवार को काफी संख्या में श्रद्धालु दर्शन-पूजन के लिए आते हैं। वहीं अन्य दिनों में भी भक्त बटुक भैरव का दर्शन करते रहते हैं। मान्यता के अनुसार बटुक भैरव के दर्शन से भय नहीं लगता और भक्त काशी में बिना किसी कष्ट के निवास करता है। इनका मंदिर सुबह 4 से दोपहर 1 बजे तक एवं सायं 4 से रात 12 बजे तक खुला रहता है। बटुक भैरव की आरती सुबह 6 बजे एवं सायं 7 बजे एवं शयन आरती रात 12 बजे सम्पन्न होती है। बटुक भैरव के मंदिर के पास ही कामाख्या देवी का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है।
काशी के अष्ट भैरव मंदिर

1- भीषण भैरव- भीषण भैरव का मंदिर  K 63/28 भूत भैरव, ज्येष्ठेश्वर के पास स्थित है। दर्शनार्थी इस मंदिर तक सप्तसागर या काशीपुरा से रिक्शे  से पहुच सकते हैं। पूजा पाठ के लिए यह मंदिर सुबह छह बजे से  दस बजे तक और शाम छह बजे से रात आठ बजे तक खुला रहता है।
2- संहार भैरव-
संहार भैरव
संहार भैरव का मंदिर  A 1/82  पाटन दरवाजा ,गायघाट के पास स्थित है। इस मंदिर तक मच्छोदरी से रिक्शा द्वारा पहुंचा जा सकता है। मंदिर दर्शन पूजन के लिए सुबह पांच बजे से  11 बजे तक और शाम पांच बजे से रात साढ़े नौ बजे तक खुला रहता है।
3- उन्मत्त भैरव- उन्मत्त भैरव का मंदिर पंचक्रोशी मार्ग के देवरा गांव में स्थित है। वाराणसी शहर से इस मंदिर की दूरी लगभग दस किलोमीटर है। यह मंदिर दर्शन पूजन के लिए हमेशा खुला रहता है।
4- क्रोधन भैरव- क्रोधन भैरव को आदि भैरव के रूप में भी जाना जाता है। यह मंदिर B 31/126 कमच्छा स्थित कामाख्या देवी मंदिर के पास स्थित है। दर्शन पूजन के लिए यह मंदिर सुबह पांच से  12 बजे तक खुला रहता है। वहीं शाम को चार बजे से रात 12 बजे तक खुला रहता है। मंदिर में नियमित रूप से सुबह और शाम की आरती होती है।
क्रोधन भैरव

5- कपाली भैरव- कपाली भैरव मंदिर 1/123 अलईपुर में स्थित है। यह मंदिर सुबह छह बजे से  11 बजे तक और शाम छह से रात नौ बजे तक खुला रहता है। कपाल भैरव को ही लाट भैरव के नाम से भी जाना जाता है।
6- असितांग भैरव- असितांग भैरव का मंदिर K 52/39 महामृत्युंजय मंदिर, वृद्ध कालेश्वर के पास स्थित है। इस मंदिर में दिन भर दर्शनार्थी दर्शन पूजन कर सकते हैं।
7-चण्ड भैरव-चण्ड भैरव का मंदिर B 27/2 दुर्गा कुण्ड पर स्थित दुर्गा देवी मंदिर के पास है। मंदिर दर्शन पूजन के लिए हमेशा खुला रहता है। कैंट से मंदिर तक ऑटो या सिटी बस से करीब बीस मिनट में पहुंचा जा सकता है।
8- रूरू भैरव- रूरू भैरव का मंदिर B 4/16 हनुमान घाट पर स्थित है। हनुमान घाट हरिश्चन्द्र घाट के निकट ही है। सोनारपुरा चौराहे से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। यह मंदिर सुबह पांच से  दस बजे तक व शाम को पांच बजे से रात साढे़ नौ बजे तक खुला रहता है।
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बनारस शिव से कभी मुक्त नही, जब से आये कैलाश न गये। बनारसी की मस्ती को लिखा नही जा सकता अनुभव होता है। अद्भूद है ये शहर जिन्दगी जीनेका तरीका कुछ ठहरा हुआ है पर सुख ठहराव में है द्रुतविलंबित में नही. मध्यम में है इसको जीनेवाला है यह नगर। नटराज यहां विश्वेश्वर के रुप में विराजते है इसलिये श्मशान पर भी मस्ती का आलम है। जनजन् शंकरवत् है। इस का अनुभव ही आनन्द है ये जान कर जीना बनारस का जीना है जीवन रस को बना के जीना है।
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काल हर !! कष्ट हर !! दुख हर !! दरिद्र हर !! हर हर महादेव !! ॐ नमः शिवाय.. वाह बनारस वाह !!